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सोमवार, 18 अक्तूबर 2010

poem-samay

कुछ छूटता -सा
दूर जाता हुआ
बार-बार याद आकर
रुलाता -सा;
क्या है?
मै नहीं जानती.
कुछ सरकता -सा
कुछ बिखरता -सा
कुछ फिसलता -सा
कुछ पलटता -सा;
क्या है?
मै नहीं जानती.
कंही ये 'समय' तो नहीं-
जो प्रत्येक पल के sath
पीछे छूटता;
हर कदम के sath
दूर होता;
जो बीत गया; उसे
पुन: पाने की आस में
रुलाता ;
धीरे-धीरे आगे बढता हुआ;
हमारे हाथों से निकलता हुआ;
कभी अच्छा ;कभी बुरा;
हाँ! ये वक़्त ही है-
मै हूँ इसे जानती!

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