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गुरुवार, 27 जनवरी 2011

prathmikta

मेरी आरजू
कुछ कर दिखाने की;
मेरा जूनून
कुछ बन पाने का ;
मेरी ख्वाहिश
सब कुछ  पाने की;
मेरे दिल में कशमकश
ऊँचा उठ जाने की;
मुझ में हलचल
उड़कर दिखाने की;
मुझमें हिम्मत
नवीन सर्जन करने की;
'मै मनुष्य हूँ'
ये हैं मेरी प्राथमिकताएं.

शुक्रवार, 21 जनवरी 2011

jeevan karm

हर  सुबह नई आशा  के साथ जागो;
 दिल में विश्वास रखो ऊपर वाले के प्रति;
गिरो अगर तो गिरकर संभालो खुद को;
जिन्दगी में जीत फिर तुम्हारी होगी!
ये मत सोचो क्या खो दिया;
रखो आशा कुछ पाने की;
मत रो अपनी विफलता पर ;
लिखो नयी इबारत कामयाबी की!
संघर्षो की राह पर चलकर  ;
मंजिल पालो सपनो की;
गम की गर्मी में तपकर ही
मिलेंगी सांसे राहत की!
जीवन कर्म का स्थल है;
आराम  यहाँ  कहाँ  करना  है;
निज  प्रयास
की क्यारी  को खुशियों  के फूलो 
 से  भरना  है !

बुधवार, 19 जनवरी 2011

aatmshakti par vishvas

आपका स्वागत है .... WELCOME TO MEDIA CARE GROUP .....‘मीडिया केयर ग्रुप’ में
जीवन एक ऐसी पहेली है जिसके बारे में बात करना वे लोग ज्यादा पसंद करते हैं जिन्होंने कदम-कदम पर सफलता पाई हो.उनके पास बताने लायक काफी कुछ होता है. सामान्य व्यक्ति को तो असफलता का ही सामना करना पड़ता है.हम जैसे साधारण मनुष्यों की अनेक आकांक्षाय होती हैं. हम चाहते हैं क़ि गगन छू लें; पर हमारा भाग्य इसकी इजाजत नहीं देता.हम चाहकर भी अपने हर सपने को पूरा नहीं कर पाते .यदि मन की हर अभिलाषा पूरी हो जाया करती तो अभिलाषा भी साधारण हो जाती .हम चाहते है क़ि हमें कभी शोक ;दुःख ; भय का सामना न करना पड़े.हमारी इच्छाएं हमारे अनुसार पूरी होती जाएँ किन्तु ऐसा नहीं होता और हमारी आँख में आंसू छलक आते है. हम अपने भाग्य को कोसने लगते है.ठीक इसी समय निराशा हमे अपनी गिरफ्त में ले लेती है.इससे बाहर आने का केवल एक रास्ता है ---आत्मशक्ति पर विश्वास;------
राह कितनी भी कुटिल हो ;
हमें चलना है .
हार भी हो जाये तो भी
मुस्कुराना है;
ये जो जीवन मिला है
प्रभु की कृपा से;
इसे अब यूँ ही तो बिताना है.
रोक लेने है आंसू
दबा देना है दिल का दर्द;
हादसों के बीच से
इस तरह निकल आना है;
न मांगना कुछ
और न कुछ खोना है;
निराशा की चादर को
आशा -जल से भिगोना है;
रात कितनी भी बड़ी हो
'सवेरा तो होना है'.

मंगलवार, 11 जनवरी 2011

samay

कुछ छूटता -सा
दूर जाता हुआ
बार-बार याद आकर
रुलाता -सा;
क्या है?
मै नहीं जानती.
कुछ सरकता -सा
कुछ बिखरता -सा
कुछ फिसलता -सा
कुछ पलटता -सा;
क्या है?
मै नहीं जानती.
कंही ये 'समय' तो नहीं-
जो प्रत्येक पल के साथ
पीछे छूटता;
हर कदम के साथ
दूर होता;
जो बीत गया; उसे
पुन: पाने की आस में
रुलाता ;
धीरे-धीरे आगे बढता हुआ;
हमारे हाथों से निकलता हुआ;
कभी अच्छा ;कभी बुरा;
हाँ! ये वक़्त ही है-
मै हूँ इसे जानती!

बुधवार, 5 जनवरी 2011

स्पंदन

दीवार से नीचे लटकती 
      ''बेल ''
कभी स्थिर -कभी हवा 
के झोंके से चंचल,
छोटे -बड़े पत्ते 
मानों उसकी अभिलाषाओं 
के प्रतीक ,
लम्बी लम्बी टहनियां  
मानों उसकी जीवन 
शक्ति क़ा संकेत ;
जब हिलती हैं 
तो लगता है कि 
मुस्कुरा रही हैं ;
जब ठहरी  रहती हैं
तो मानो  उदास हो जाती  हैं ;
क्या इनमे भी जीवन है ?
ये एक जिज्ञासा सिर उठाती है ;
जो तुरंत ही शांत
भी हो जाती है ;
जब बेल की एक टहनी
लचक कर मेरे चेहरे
से छू जाती है ;
मानो यह कह जाती
है -हम भी तेरे जैसे ही है
''हम में भी है स्पंदन ''