फ़ॉलोअर

शनिवार, 2 जुलाई 2011

कुछ शेर

कुछ  शेर 


गैरों की ख़िलाफ़त  हमको नहीं सताती ;
पर अपनों की बग़ावत  आग लगा जाती .

किस पर करें यकीं  ए-ज़िंदगी बता ;
तू भी तो एक दिन साथ छोड़ जाती .

किससे करें गिला क्या थी मेरी ख़ता ;
जिस पर पता न हो वो चिट्ठी लौट आती .

हमने लिखा था दर्द वे कमियां बताते हैं ;
उनके हुनर की कीमत हमको समझ न आती .

दिन रात दोस्त बनकर बैठते थे मेरे पास ;
मुद्दत से गैर-हाज़िर कोई खबर नहीं आती .

ऊपर से रहमदिल अन्दर से हैं ज़ालिम ;
इन्सान की ये फितरत कितना हमें रुलाती .




7 टिप्‍पणियां:

Shalini kaushik ने कहा…

ऊपर से रहमदिल अन्दर से हैं ज़ालिम ; इन्सान की ये फितरत कितना हमें रुलाती .
bahut khoobsurati se abhivyakt kiya hai aapne manushay ki fitrat ko.badhai.

vandana gupta ने कहा…

यही है दुनिया की फ़ितरत …………अन्दर कुछ और बाहर कुछ्।

महेन्द्र श्रीवास्तव ने कहा…

क्या बात है.. बहुत सुंदर

दिन रात दोस्त बनकर बैठते थे मेरे पास ;
मुद्दत से गैर-हाज़िर कोई खबर नहीं आती .

Vivek Jain ने कहा…

बहुत अच्छे शेर,वाह
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

हमने लिखा था दर्द वे कमियां बताते हैं ;
उनके हुनर की कीमत हमको समझ न आती .


बहुत खूब ...

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

हमने लिखा था दर्द वे कमियां बताते हैं ;
उनके हुनर की कीमत हमको समझ न आती .

Khoob kaha...

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

ग़ज़ल ने तो मन मोह लिया!