फ़ॉलोअर

रविवार, 9 सितंबर 2012

मानस के रचनाकार में भी पुरुष अहम् भारी


Stamp on Tulsidas
सात कांड में रची तुलसी ने ' मानस '  ;
आठवाँ लिखने का क्यों कर न सके साहस ?

आठवे में लिखा  जाता  सिया  का विद्रोह  ;
पर त्यागते  कैसे  श्री राम यश का मोह ?

लिखते अगर तुलसी सिया का वनवास ;
घटती राम-महिमा उनको था विश्वास .

अग्नि परीक्षा और शुचिता प्रमाणन  ;
पूर्ण कहाँ इनके बिना होती है रामायण ?

 आदिकवि  सम  देते  जानकी  का  साथ ;
अन्याय को अन्याय कहना है नहीं अपराध . 

लिखा कहीं जगजननी कहीं  अधम नारी ;
मानस के रचनाकार में भी पुरुष अहम् भारी .

तुमको दिखाया पथ वो  भी  थी एक नारी ;
फिर कैसे लिखा तुमने ये ताड़न की अधिकारी !

एक बार तो वैदेही की पीड़ा को देते स्वर ;
विस्मित हूँ क्यों सिल गए तुलसी तेरे अधर !

युगदृष्टा -लोकनायक गर ऐसे रहे मौन ;
शोषित का साथ देने को हो अग्रसर कौन ?

भूतल में क्यूँ समाई  सिया करते स्वयं मंथन ;
रच काण्ड आँठवा करते सिया का वंदन .  

चूक गए त्रुटि शोधन  होगा नहीं कदापि ;
जो सत्य न लिख पाए वो लेखनी हैं पापी .


हम लिखेंगे सिया  के विद्रोह  की  कहानी ;
लेखन में नहीं चल सकेगी पुरुष की मनमानी !!

                                  शिखा कौशिक 'नूतन'


4 टिप्‍पणियां:

अज़ीज़ जौनपुरी ने कहा…

shalini ji,mahilao ke prati ek sakaraymk sch vehad jaruri hai,hmara najariya yh hai vartman me yadi nari ki tamam samasyaon ko hal karne ke pyayas kiye jay to adhik behtar hga,etihas hme nasihat deta hai,j0 kuch galtiyan huyee hai use vartman me n duhraya ja ske,

Always Unlucky ने कहा…

_____________@@__@_@@@_____
_____________@__@@_____@_____
____________@@_@__@_____@_____
___________@@@_____@@___@@@@@_____
__________@@@@______@@_@____@@_____
_________@@@@_______@@______@_@_____
_________@@@@_______@_______@_____
_________@@@@@_____@_______@_____
__________@@@@@____@______@_____
___________@@@@@@@______@_____
__@@@_________@@@@@_@_____
@@@@@@@________@@_____
_@@@@@@@_______@_____
__@@@@@@_______@@_____
___@@_____@_____@_____
____@______@____@_____@_@@_____
_______@@@@_@__@@_@_@@@@@_____
_____@@@@@@_@_@@__@@@@@@@_____
____@@@@@@@__@@______@@@@@_____
____@@@@@_____@_________@@@_____
____@@_________@__________@_____
_____@_________@_____
_______________@_____
____________@_@_____
_____________@@_@_____

From India

Aditi Poonam ने कहा…

शिखाजी ये विद्रोही स्वर मन को अंदर तक छू गए .कहीं पढ़ा\था मिथिला में कई मंदिर एइसे है जिनमे किअकेलेसीताजी की ही मूर्ती है क्योंकि उन्होंनेहमारी पुत्री को त्याग दिया था
इससे श्रीराम मूर्ती की स्थापना ही नहीं की गई
इस सुंदर रचना के लिए बधाई

S.N SHUKLA ने कहा…


बहुत सुन्दर प्रस्तुति , बधाई.

कृपया मेरे ब्लॉग" meri kavitayen " की नवीनतम पोस्ट पर पधारकर अपना स्नेह प्रदान करें, आभारी होऊंगा .